Saturday 23 July 2011

जनतंत्र


जनतंत्र
जनतंत्र कहें या लोकतंत्र,
या फिर कह लें हम प्रजातंत्र,
यह शासन की वह पद्धति है,
जिसमें हर व्यक्ति होता है स्वतंत्र ।

अनुशासित जन जीवन होता,
अधिकार बराबर सबका होता है,
कर्त्तव्य का पालन सब करते
और जीवन सुखमय होता है ।

भय नहीं किसी का कभी किसी को,
सब निर्भय होकर जीते हैं,
स्वच्छंद विचरते हर प्राणी
और प्रेम का रस सब पीते हैं ।

जनतंत्र मे सरकार हरदम,
जनता के अनुसार ही चलती,
और जनमानस की भावना का
सम्मान सदा है वह करती ।

जनता का निर्णय ही हरदम
सरकार का निर्णय होता है,
जनता द्वारा, जनता की खातिर,
जनता का शासन होता है ।

जन जीवन बेहतर हो- इस खातिर
सरकार समर्पित होती है,
जनता के जीवन की, संपत्ति की,
मान और सम्मान की रक्षा होती है ।

न्याय मिले सबको – इस खातिर,
सरकार समर्पित होती है,
धर्म की रक्षा करने को
सरकार समर्पित होती है ।

जन समस्या का शीघ्र निवारण,
सरकार किया करती हरदम,
जन चिकित्सा, जन शिक्षा का प्रबन्ध
सरकार किया करती हरदम ।

कृषि कार्य को, पशु पालन को,
सरकार बढावा देती है,
वाणिज्य और व्यापार को
सरकार बढावा देती है ।

शान्ति व्यवस्था बनी रहे,
करती प्रबन्ध इसका सरकार,
आवागमन संचार की सुविधा,
का भी प्रबन्ध करती सरकार ।

सबसे काबिल और सर्वश्रेष्ठ,
सबसे काबिल सबसे महान,
है कौन जन – इसका निर्णय
करती जनता सबको पहचान ।

फिर शासन के संचालन का
अधिकार उसे सौंपा जाता,
जो सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण होता,
मंत्री पद उसको ही सौंपा जाता ।

न्यायाधीश के पद धारण का,
विधि नियमों के निर्धारण का,
और शासन के संचालन का,
अधिकार है होता ब्राह्मण का ।

चिकित्सक, शिक्षक, वैज्ञानिक का,
न्यायविद और शिक्षाविद का,
पद धारण ब्राह्मण करते है,
पद होता यह ब्राह्मण जन का ।

बुद्धिजीवी ब्राह्मण होता है सदा,
मानव समाज की सेवा करता है,
नीति, धर्म, नियम की व्याख्या करता,
विधि विधान बनाता है ।

राष्ट्र के अध्यक्ष या पद राजा का,
सर्वश्रेष्ठ क्षत्रिय को सौंपा जाता है,
राजपद के धारण का अधिकार,
क्षत्रिय का हरदम होता है ।

सेना में, पुलिस में, फौज में,
क्षत्रिय ही शामिल होता है,
वह जनता के जीवन की, सम्पत्ति की,
और देश की रक्षा करता है ।

पशुपालन, कृषि, वाणिज्य और व्यापार
करते जो वैश्य वही कहलाते हैं,
श्रमिक, सहायक, नौकर, अनुसेवक,
मजदूर जो होते शूद्र वही कहलाते हैं ।

ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र –
है नाम सदा मानव गुणों का, वर्ण का,
जन्मगत जाति नहीं यह इंगित करता,
यह नाम सदा है वर्ग का या वर्ण का ।

ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, लोभ का,
अहंकार, भय, मोह, घृणा का,
पूर्वाग्रह का, पक्षपात का,
त्याग इन दस मानव दुर्गुण का –

यह प्रथम गुण लक्षण ब्राह्मण का,
और प्रथम गुण लक्षण क्षत्रिय का,
यह प्रथम गुण लक्षण वैश्य का
और प्रथम गुण लक्षण शुद्र का ।

सत्य अहिंसा धर्म का पालन
हर ब्राह्मण अपने जीवन में करता है ।
वह अत्याचार नहीं करता
और अत्याचार न सहता है ।

मानवता की सेवा में ब्राह्मण
जीवन का अर्पण करता है ।
वह धर्म की रक्षा की खातिर
परशु भी धारण करता है ।

क्षात्र धर्म को भूल क्षत्रिय जब
रक्षक होकर भक्षक बनके जीता है ।
तो अत्याचार के अन्त की खातिर ब्राह्मण
क्षत्रिय का संहार किया भी करता है ।

दोषी अपराधी को दंडित करने को
ब्राह्मण उग्र रूप धारण करता,
पर दोषी छोड किसी दूजे को
कभी नहीं वह दंडित करता ।

हिंसा अत्याचार सहन करना –
घनघोर है हिंसा, पाप वो माने,
हिंसक से लडना सही अहिंसा,
हिंसा के प्रतिकार की नीति वह जाने ।

सत्य, न्याय, धर्म की रक्षा की खातिर
वह झूठ को सच से बेहतर माने,
धर्म विजय, निर्दोष की रक्षा की खातिर
हर प्रकार के छल करना भी वह जाने ।

हर ब्राह्मण धन विद्या अर्जन करता है
और धन विद्या दान भी करता है,
वह स्व – अनुशासित रह्ता है
और न्याय का पालन करता है ।

मानव दुर्गुण को त्याग सदा जो
मानव सद्गुण धारण करता है,
सच्चा ब्राह्मण हरदम जग में
मात्र ऐसा व्यक्ति ही कहलाता है ।

क्षत्रिय निर्दोष की रक्षा करता है,
वह मौत से नहीं डरता है,
भयभीत कभी नहीं होता है,
वह हर मुश्किल से लडता है ।

पत्थर – सी होती मांसपेशियां,
फौलादी उसके सीने होते हैं,
लोहे – से होते हैं भुजदंड अभय
मजबूत इरादे हरदम होते हैं ।

नारी के सम्मान की रक्षा करता है,
और सदा कमजोर की रक्षा करता है,
देश और जनता की रक्षा की खातिर
क्षत्रिय जीवन का दांव लगाता है ।

हर क्षत्रिय आधा से ज्यादा ही
ब्राह्मण का गुण भी रखता भी रखता है,
हर क्षत्रिय अपने जीवन में
हर ब्राह्मण का आदर करता है ।

जग में सच्चे ब्राह्मण के साथ सदा
सच्चे क्षत्रिय भी आदर पाते हैं,
धरा पर सभ्य समाज रूपी शरीर के
ब्राह्मण मस्तिष्क क्षत्रिय भुजा कहलाते हैं ।

मृदुवाणी, वाक्चातुर्य, भावना शुभ लाभ की –
यह विशिष्ट है गुण लक्षण हर वैश्य का ।
कठिन परिश्रम, सबको आदर, सबकी सेवा –
यह विशिष्ट है गुण लक्षण हर शूद्र का ।

मानव के गुण और लक्षण ही जहां पर
पेशा का, व्यवसाय का आधार होता,
जनतंत्र वहीं पर होता है,
जीवन सुखमय सबका होता ।

जनतंत्र की गलत व्याख्या कर
जब अपराधी शासक बन जाते,
चोर, लुटेरे, तस्कर, अनपढ भी
विधायक, मंत्री, सांसद बन जाते ।

जाति मजहब की अग्नी सुलगाकर
राजनीति की रोटी जब सेंके जाते,
अत्याचारी, बलात्कारी, अन्यायी
भ्रष्ट जन, अपराधी हैं कानून बनाते ।

ब्राह्मण गुणों से हीन जन जब
न्यायाधीश- मंत्री पद का धारण करते हैं,
और क्षत्रिय गुणों से हीन जन
सेना में, पुलिस में शामिल होते हैं ।

तो ऐसी हालत में वहां पर
जनतंत्र बन जाता है भ्रष्टतंत्र,
अपराध पनपता है वहां,
स्थापित हो जाता अपराधतंत्र ।

वहां पर न्याय के ही नाम पर
अन्याय का नंगा नाच होता,
और शासन के नाम पर
कुशासन का विस्तार होता ।

धर्म के ही नाम पर वहां
अधर्म का व्यापार होता,
उग्रवाद पनपता है वहां
और आतंकवाद प्रश्रय पाता ।

क्राइम डेवलपमेन्ट कॉर्पोरेशन
सरकार चलाया करती है,
करप्शन प्रोमोशन कॉर्पोरेशन
सरकार चलाया करती है ।

नेतागण ताकतवर होते
फ्लेश ट्रेड के पैट्रन होते,
किड्नैपिंग इंडस्ट्री के वे
मैनेजिंग डाय्रेक्टर होते ।

तरह तरह का टैक्स चुकाती
जनता की होती है हालत खस्ता,
सरकारी टैक्स के अतिरिक्त उसे
रंगदारी टैक्स भी है देना पडता ।

बिन वर्दी के गुन्डा का साथ
वर्दी वाले गुन्डा देते,
और दोनों मिलकर जनता से
रंगदारी टैक्स लिया करते ।

विकास कार्य की राशि का
सरकारी तंत्र में बंदरबांट होता,
मंत्री, अफसर, बाबू से इंजीनीयर तक
सबको कमीशन बंट जाता ।

और फिर टैक्स देने वाली जनता
पानी बिजली को तरसती रहती,
कूडे – कचरे के दुर्गंध से बेहाल जनता
सडक पर गड्ढों से परेशान है रहती ।

अपराधियों के साये में वह
सदा है जीवन खॉफ से जीती ।
महिलाओं की इज्जत आबरू
सरे आम भी है लूटी जाती ।

आओ सब मिलकर सोंचें विचारें,
आज यह प्रण कर लें हम,
सच्चे धर्म और जनतंत्र की स्थापना
अब करके ही दम लेंगे हम ।
n     कृष्ण बल्लभ शर्मा “योगीराज”
(“इतिहास रचयिता” नामक पुस्तक से उद्धृत)

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