Saturday 23 July 2011

धर्म सम्प्रदाय रेलीजन और मजहब


धर्म सम्प्रदाय रेलीजन और मजहब
ईश्वर कहें, अल्लाह कहें, गॉड कहें या वाहे गुरू,
जिस किसी भी भाषा में जो नाम कहें, परमात्मा तो एक हैं ।
कृष्ण कहें, गोविन्द कहें, मोहन कहें, घनश्याम कहें,
मुरलीधर या माखनचोर कहें, वह तो सदा ही एक हैं ।

हिन्दू हों या मुस्लिम हों, सिख हों या फिर ईसाई,
आखिर सब इन्सान हैं, इस धरती के शैदाई ।
मजहब चहे जुदा – जुदा, धर्म सभी का एक है,
मनु कहें, ऐडम कहें, आदम कहें, पूर्वज सभी के एक हैं ।

चोगा धारण धर्म नहीं, ऊपर का दिखावा धर्म नहीं,
रीति निभाना धर्म नहीं, रिवाज का पालन धर्म नहीं ।
चंदन – टीका है धर्म नहीं, और दाढी बढाना धर्म नहीं,
मंदिर – मस्जिद का झगडा या बुरका – तलाक है धर्म नहीं ।

रेलिजन है धर्म नहीं, मजहब का माने धर्म नहीं,
जाति – समुदाय धर्म नहीं, और सम्प्रदाय भी धर्म नहीं ।
ये लोगों को लडवाते हैं, आपस में भेद कराते हैं,
ये दंगे भी करवाते हैं, इन्सां का लहू बहाते हैं ।

मंदिर – मस्जिद के झगडे मे इन्सानों को मरवाते हैं,
“जिहाद” के नाम पर “दहशतगर्दी”, “दंगा” ये करवाते हैं ।
जाति – पाति का भेद कराकर, छुआ – छूत निभाते हैं,
जाति – मजहब के नाम पे नाहक लोगों को लडवाते हैं ।

मानवता की सेवा में जीवन का अर्पण धर्म है,
निर्बलों की रक्षा और वृक्षों की सेवा धर्म है ।
अत्याचारी का विरोध सख्ती से करना धर्म है,
आत्म – रक्षा के लिये तलवार उठाना धर्म है ।

ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, लोभ, मोह का परित्याग धर्म है,
पूर्वाग्रह, पक्षपात का हरदम परित्याग धर्म है ।
भय, घृणा और अहंकार – इनका परित्याग धर्म है,
ये दस मानव दुर्गुण हैं, जिनका परित्याग धर्म है ।

परोपकार में धर्म छिपा, परपीडा हरना धर्म है,
अत्याचार नहीं करना और न्याय का पालन धर्म है ।
सत्य – अहिंसा धर्म है और जन – सेवा भी धर्म है,
प्यार – दया की भावना और स्व – अनुशासन धर्म है ।

उन्नति विज्ञान की और ज्ञान की वृद्धि धर्म है,
निरंतर शोध, विकास - कार्य, जन – चिकित्सा धर्म है ।
करना अर्थोपार्जन और जीवन का आनंद लेना धर्म है,
“सच्चे ब्राह्मण” को धन “दान” देना हर मानव का धर्म है ।

मातृ – सेवा धर्म है और पितृ – सेवा धर्म है,
भ्रातृ – सेवा धर्म है और बहन की रक्षा धर्म है ।
पति – सहयोग धर्म है, पत्नी – सहयोग धर्म है,
पुत्र – पालन धर्म है, पुत्री का पालन धर्म है ।

शान्ति – व्यवस्था धर्म है, समता – समरसता धर्म है,
मानवाधिकार की रक्षा धर्म है, नारी के सम्मान की रक्षा धर्म है ।
मानव – हृदय में प्रकृति की उंगली से लिखा जाता जो धर्म है,
अंतरात्मा की वाणी धर्म है, मानव मात्र एक हैं – यही धर्म का मर्म है ।

परमात्मा के प्रति हो श्रद्धा भावना, ईश्वर की भक्ति धर्म सदा,
अपना – परिजन का पालन – पोषण, जीवन रक्षा धर्म सदा ।
धर्म सत्य है इस धरा पर, इसके सिवा कुछ सत्य नहीं,
जो धर्म न पालन करता हो, वह पालन करता सत्य नहीं ।

हिंसक से लडना सही अहिंसा, हिंसा – अत्याचार सहन करना –
घनघोर है हिंसा, पाप मानें, हिंसा का प्रतिपोषण मानें ।
सबसे श्रेष्ठ वही ज्ञानी, जो धर्म विजय, निर्दोष की रक्षा, अथवा
न्याय, धर्म की रक्षा की खातिर, जो झूठ को सच से बेहतर माने ।

देश, काल, पात्र को रख ध्यान में, तर्क की कसौटी पर
खरा नहीं जो उतर सके, वह कदापि धर्म नहीं अधर्म है ।
ईश्वर पूजा की पद्धति, परिधान हो या कोई रीति – रिवाज,
देश, काल, पात्र के अनुरूप न हो, तो धर्म नहीं अधर्म है ।

देश, काल, पात्र को रखकर हमेशा ध्यान में,
करना कर्म उचित, सम्यक वचन, कर्त्तव्य पालन धर्म है ।
देश, काल, पात्र को रख ध्यान में, तर्क की कसौटी पर
खरा हमेशा जो उतरे, मान लें वह धर्म है ।
n     कृष्ण बल्लभ शर्मा “योगीराज”
(“इतिहास रचयिता” नामक पुस्तक से उद्धृत)

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