नये समय के नये तराने
नवयुग के हम नये तराने,
नये हृदय की बात करेंगे,
नवयुग के इस महाचरण मे
नवजीवन का प्राण भरेंगे ।
रक्त नया है, जोश नया है,
गीत नया हम गायेंगे,
साज नया, अंदाज नया,
अब राग नया हम गायेंगे ।
हम नूतनता के निर्भय पंथी,
धारा के प्रतिकूल चलेंगे,
जीर्ण जगत की शीर्ण शिरा को,
नये रक्त का परिचय देंगे ।
पर्वत को रस्ता देना होगा,
कदम हमारे जहां पडेंगे,
सागर को रस्ता देना होगा,
सागर को हम चीर बढेंगे ।
नये समय की नयी वायु में,
आज नया एक आवाहन है,
नयी सांस मधुबन को देने,
आया दल फिर एक नूतन है ।
मधुबन में कलियां नयी – नयी,
नित फूल नये खिलते जाते,
नव वसंत की वेला में,
कोकिल भी नवगायन गाते ।
नवयुग के पर्दे पर आज,
नये रक्त का रंग भरेंगे,
नवीनता के हम अभियानी,
नयी राहों पर आज चलेंगे ।
n कृष्ण बल्लभ शर्मा “योगीराज”
(“इतिहास रचयिता” नामक पुस्तक से उद्धृत)
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