Saturday 23 July 2011

इतिहास रचयिता


इतिहास रचयिता
विध्नों से नहीं घबराते हैं,
कष्टों में भी मुस्काते हैं,
इतिहास रचयिता जो होते
काँटों में राह बनाते हैं ।

कोई काम नहीं ऐसा जग में,
जो वीर नहीं कर सकते हैं,
जो ठान लिया सो ठान लिया,
पूरा कर के ही रुकते हैं ।

साथ किसी का मिले न मिले,
खुद आगे बढते जाते हैं,
तकदीर की बातें करते नहीं,
कर्मों पे भरोसा करते हैं ।

अवसर की प्रतीक्षा करते नहीं,
अवसर वे पैदा करते हैं,
प्रतिकूल समय की परवा (ह) नहीं,
प्रतिकूल हवा में बढते हैं ।

कुछ लोग खफा उनसे रहते,
जिनका है स्वार्थ नहीं सधता,
पर जीता जो जग की खातिर,
खुश एक को कैसे कर सकता ?

हो सकता जितना उनसे,
कर्त्तव्य निभाते जाते हैं,
सबकी खातिर वे जीते हैं,
वे सब पर प्यार लुटाते हैं ।

दूसरों की नहीं वे नकल करते,
इतिहास नही दोहराते हैं,
इतिहास नया वे रचते हैं,
इतिहास पुरूष कह्लाते हैं ।
n  कृष्ण बल्लभ शर्मा “योगीराज”
(“इतिहास रचयिता” नामक पुस्तक से उद्धृत)

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