ओ वीर ! जरा साहस कर देखो
ओ वीर ! जरा साहस कर देखो,
आगे कदम बढा कर देखो ।
दुख – दर्द हवा हो जायेंगे,
गम के बादल छंट जायेंगे,
सफलता चूमेगी कदम,
और शूल फूल बन जायेंगे ।
हाथ पर हाथ धर बैठे रहना कायरता है ।
साहस कर जो बढे न आगे, जीता जी भी मरता है ।
ओ वीर ! जरा साहस कर देखो,
आगे कदम बढा कर देखो ।
पर्वत की चोटियां झुक जायेंगी,
राहों में फूल – कली बिछ जायेंगे,
सागर देगा राह तुम्हें,
और लोग देख हर्षायेंगे ।
सागर की असंख्य लहरों को देख तुम्हें न डरना है ।
सामना तो एक बार में एक लहर का ही करना है ।
ओ वीर ! जरा साहस कर देखो,
आगे कदम बढा कर देखो ।
तरी खोल हिम्मत करोगे,
राह खुद बन जायेगा,
सागर की छाती चीर बढो तुम,
मंजिल तुम्हें मिल जायेगा ।
चोट खाकर हिम्मत हार जाना मूर्खता है,
वीर हार में जीत रहस्य का ढूंढता है ।
ओ वीर ! जरा साहस कर देखो,
आगे कदम बढा कर देखो ।
हार जीत बन जायेगी,
बिछडे भी गले लगायेंगे,
फतह जब मंजिल कर लोगे,
आलोचक प्रशंसक बन जायेंगे ।
परम साहसी की सदा ही होती जय – जयकार है ।
पूजा जाता वह जग में, वह आदर का हकदार है ॥
n कृष्ण बल्लभ शर्मा “योगीराज”
(“इतिहास रचयिता” नामक पुस्तक से उद्धृत)
bahut hi achhi rachana hai. positive thinking se bhari hui.
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