Monday 25 July 2011

ओ वीर ! जरा साहस कर देखो


ओ वीर ! जरा साहस कर देखो
ओ वीर ! जरा साहस कर देखो,
आगे कदम बढा कर देखो ।
            दुख – दर्द हवा हो जायेंगे,
            गम के बादल छंट जायेंगे,
            सफलता चूमेगी कदम,
और शूल फूल बन जायेंगे ।
हाथ पर हाथ धर बैठे रहना कायरता है ।
साहस कर जो बढे न आगे, जीता जी भी मरता है ।

ओ वीर ! जरा साहस कर देखो,
आगे कदम बढा कर देखो ।
            पर्वत की चोटियां झुक जायेंगी,
राहों में फूल – कली बिछ जायेंगे,
सागर देगा राह तुम्हें,
और लोग देख हर्षायेंगे ।
सागर की असंख्य लहरों को देख तुम्हें न डरना है ।
सामना तो एक बार में एक लहर का ही करना है ।

ओ वीर ! जरा साहस कर देखो,
आगे कदम बढा कर देखो ।
            तरी खोल हिम्मत करोगे,
            राह खुद बन जायेगा,
सागर की छाती चीर बढो तुम,
मंजिल तुम्हें मिल जायेगा ।
चोट खाकर हिम्मत हार जाना मूर्खता है,
वीर हार में जीत रहस्य का ढूंढता है ।

ओ वीर ! जरा साहस कर देखो,
आगे कदम बढा कर देखो ।
            हार जीत बन जायेगी,
            बिछडे भी गले लगायेंगे,
            फतह जब मंजिल कर लोगे,
            आलोचक प्रशंसक बन जायेंगे ।
परम साहसी की सदा ही होती जय – जयकार है ।
पूजा जाता वह जग में, वह आदर का हकदार है ॥
n     कृष्ण बल्लभ शर्मा “योगीराज”
(“इतिहास रचयिता” नामक पुस्तक से उद्धृत)

1 comment:

  1. bahut hi achhi rachana hai. positive thinking se bhari hui.

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