Monday 25 July 2011

वतन के नौजवान जाग


वतन के नौजवान जाग
जाग, जाग, जाग, वतन के नौजवान जाग,
सुन के मातृभूमि की पुकार अब तू जाग,
जाग, जाग, जाग, वतन के नौजवान जाग ।

मातृभूमि है पुकारती, वतन तुझे पुकारता,
पुकारती है ये जमीं, है आसमां पुकारता,
सो चुके बहुत हो तुम, बहुत नशे में रह चुके,
व्यर्थ की ही बात में समय बहुत गँवा चुके,
अपनी जिम्मेवारियों से अब न भाग,
जाग, जाग, जाग, वतन के नौजवान जाग ।

शक्ति का तू पुंज है, शान्ति का तु दूत बन,
मौत को शिकस्त दे, तु बाँध के सर पे कफन,
आगे बढ ओ नौजवाँ, संभाल तू अपना वतन,
बर्बाद न कोई करने पाये, तेरा ये प्यारा चमन,
तेरा वतन तुझे रहा पुकार जाग,
जाग, जाग, जाग, वतन के नौजवान जाग ।

जाति, पंथ, संप्रदाय, भाषा, वर्ग, लिंग के,
नाम पर खडी दीवार को तू तोड दे,
आपस में बाँटती है जो, एक- दूसरे से काटती है जो,
उस फूटैली फूट का सिर फोड दे,
हिमालय से आ रही पुकार जाग,
जाग, जाग, जाग, वतन के नौजवान जाग ।

इरादे हों अटल तेरे, बुलंद हो (अ)गर हौसला,
फिर तो तेरे कदमों मे मिटेगा हर एक फैसला,
आपस की फूट मिटा के तू, जो साथ- साथ चल चले,
हिम्मत तू कर जो बढ चले, न टिक सकेंगी मुश्किलें,
हे वीर आर्यपुत्र ! तुम मुश्किलों से अब न भाग,
जाग, जाग, जाग, वतन के नौजवान जाग ।
n     कृष्ण बल्लभ शर्मा “योगीराज”
(“इतिहास रचयिता” नामक पुस्तक से उद्धृत)

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