Friday 3 August 2012

Biography of Pundit Hari Narain Sharma in Hindi

महान स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद, चिकित्सक एवं समाज सुधारक
स्व० पं० हरि नारायण शर्मा की प्रेरणादायक जीवनी एवं उपलब्धि

राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिप्राप्त शिक्षाविद, सुप्रसिद्ध चिकित्सक, महान स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, आर्य समाज के महामंत्री एवं प्रमुख प्रचारक स्व० पंडित हरिनारायण शर्मा उर्फ हरिनारायण मिश्र का जीवन, कार्य और उनकी उपलब्धियां तथा बहुमुखी प्रतिभा से युक्त उनका अद्वितीय व्यक्तित्व सभी समुदाय के सभी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है तथा शाकद्वीपीय ब्राह्मण समुदाय के लिए गर्व का विषय है |
पंडित हरिनारायण शर्मा उर्फ हरिनारायण मिश्र का जन्म सन 1872 ई० में बिहार प्रान्त के पटना जिला के अंतर्गत दानापुर रेलवे स्टेशन (खगौल) के निकट कैंट रोड के किनारे अवस्थित मुस्तफापुर नामक ग्राम में सुप्रसिद्ध शाकद्वीपीय ब्राह्मण वैद्य परिवार में हुआ था | उनके पिता स्व० पं० प्रभुनाथ मिश्र अपने ज़माने के मशहूर वैद्य थे | उनके परिवार में एक से बढ़कर एक सुप्रसिद्ध आयुर्वेद विशेषज्ञ वैद्यों ने जन्म लिया था, जिन्होंने विशेषकर आयुर्वेद के नाड़ी विज्ञान, द्रव्य गुण विज्ञान तथा रस चिकित्सा विज्ञान के विशेषज्ञ के रूप में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की थी | उनके पूर्वज मोकामा निवासी स्व० पं० शेठ चन्द्र मिश्र को करीब चार सौ वर्ष पूर्व बिहार बंगाल एवं उडीसा के नवाब मुस्तफा खान ने उनके आयुर्वेद के विशिष्ट ज्ञान से प्रभावित होकर उन्हें पाटलिपुत्र से सटे खगौल के निकट बहुत बड़ी जागीर दान स्वरुप भेंट किया था, जिसका नामकरण मुस्तफा खान के ही नाम पर मुस्तफापुर किया गया | मूलतः उनके पूर्वज बिहार प्रांत के गया जिला (वर्त्तमान औरंगाबाद जिला) के अंतर्गत पवई ग्राम के निवासी थे, इसीलिये उन्हें पवईयार भी कहा जाता था तथा उनके परिवार का पुर पवईयार था | पंडित हरिनारायण शर्मा उर्फ हरिनारायण मिश्र चार भाई थे, जिनका नाम क्रमशः इस प्रकार था – शिव नन्दन मिश्र, राम अवतार मिश्र उर्फ रामावतार शर्मा, राम लगन मिश्र एवं हरि नारायण मिश्र उर्फ हरि नारायण शर्मा |
पंडित हरिनारायण शर्मा अपने सभी भाइयों में सबसे छोटे तथा बचपन से ही अत्यंत प्रतिभाशाली थे | वंशानुगत पारिवारिक परम्परा के अनुसार अपने परिवार में ही रहकर आयुर्वेद, धर्म शास्त्र, भारतीय दर्शन, तथा चारों वेद का अध्ययन कर बाल्यकाल में ही अपनी अद्भुत प्रतिभा और ज्ञान से सभी को प्रभावित करना प्रारम्भ कर दिया | आगे चलकर बड़े होकर विशष्ट ज्ञान की प्राप्ति हेतु वे पटना से लाहौर (वर्त्तमान पाकिस्तान) चले गए, जहाँ जाकर उन्होंने वैदिक ज्ञान, धर्म शास्त्र और आयुर्वेद का विशिष्ट ज्ञान प्राप्त किया | लाहौर में रहकर उच्च शिक्षा प्राप्त करते हुए लाला लाजपत राय, नरदेव शास्त्री, मंगलदेव शास्त्री, जे० बी० कृपलानी आदि से उनकी घनिष्ठ मित्रता स्थापित हो गयी तथा आर्य समाज के सिद्धांतों से तथा आर्य समाज के समाज सुधार कार्यक्रम से प्रभावित होकर आर्य समाज में शामिल हो गए और आर्य समाज के प्रमुख प्रचारक बन गए | बाल गंगाधर तिलक को उन्होंने अपना गुरु और मार्गदर्शक मान लिया और बाल गंगाधर तिलक के नेतृत्व में भारत के स्वतन्त्रता आंदोलन में गरम दल में शामिल हो गए | भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस, हिन्दू महासभा, विश्व हिन्दू परिषद और आर्य समाज के धर्म सुधार आंदोलन के प्रचार प्रसार में अग्रणी भूमिका निभाते हुए भारत के स्वतन्त्रता आंदोलन में भी उन्होंने बढ़ चढ कर हिस्सा लिया | हैदराबाद में साम्प्रदायिक अत्याचार की समस्या समाधान के समस्त शान्तिपूर्ण प्रयास के विफल हो जाने के बाद अपने गुरु बाल गंगाधर तिलक के निर्देश पर सन 1938 ई० में पंडित हरि नारायण शर्मा ने हैदराबाद निजाम के विरुद्ध सत्याग्रह आन्दोलन के लिए कॉंग्रेस जत्था का नेतृत्व किया | चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में चल रहे सशस्त्र क्रांतिकारी आंदोलन को भी प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप में उन्होंने सदैव सहयोग दिया |
लाला लाजपत राय पर लाठी चार्ज और उनके निधन के विरुद्ध बदला स्वरुप अंग्रेज पुलिस सुपरिटेंडेंट सौन्डर्स की ह्त्या के बाद जब अंगरेजी हुकूमत हाथ धोकर चंद्रशेखर आजाद के पीछे पड़ गयी, तो पंडित हरि नारायण शर्मा ने ही स्वयं द्वारा स्थापित सुप्रसिद्ध वेद रत्न विद्यालय (गुरुकुल) के विशाल प्रांगण में छात्रावास में गुप्त रूप से चंद्रशेखर आजाद को छिपा कर रखा | जब अंगरेजी हुकूमत को इस बात की जानकारी मिली तो अंग्रेज पुलिस सुपरिटेंडेंट वेद रत्न विद्यालय (गुरुकुल) में छापामारी के लिए पहुचे, परन्तु पंडित हरि नारायण शर्मा ने अंग्रेज पुलिस को गुरुकुल के प्रांगण में प्रवेश हेतु लिखित आवेदन देकर प्रवेश की लिखित अनुमति मांगने को बाध्य कर दिया और इस बीच चन्द्रशेखर आजाद हाफपैंट शर्ट पहनकर गुरुकुल के छात्र का वेश धारण कर लिए और गुरुकुल के अन्य छात्रों के  साथ मिलकर स्वयं ही अंग्रेज पुलिस सुपरिटेंडेंट को पूरे गुरुकुल के प्रांगण का निरीक्षण करवा दिया और चंद्र शेखर आजाद के साथ घुमते हुए भी पुलिस सुपरिटेंडेंट उनको नहीं पकड़ पाया और वापस लौट गया |
समाज सुधारक तथा आर्य समाज के प्रमुख प्रचारक एवं महामंत्री के रूप में पंडित हरि नारायण शर्मा ने जातिगत भेदभाव एवं छुआछूत का प्रबल विरोध किया तथा विधवा विवाह को प्रोत्साहन दिया | स्वतंत्रता आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाने के कारण कई बार उन्हें जेल यात्रा भी करना पडा |
पंडित हरि नारायण शर्मा ने अपने निजी भूखंड पर सन 1901 ई० में कैन्ट रोड के किनारे मुस्तफापुर, खगौल, पटना (बिहार) में गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के अंतर्गत सुप्रसिद्ध वेद रत्न विद्यालय (गुरुकुल) की स्थापना की थी तथा सन 1915 ई० में इसका पूर्ण विस्तार हुआ था | कुछ ही समय में वैदिक अध्ययन, आयुर्वेद, व्याकरण, ज्योतिषशास्त्र, दर्शन शास्त्र, संस्कृत, भाषा विज्ञान, गणित आदि विषयों के पठन पाठन एवं शोध कार्य के लिए इस शिक्षण संस्थान ने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित की | अन्य छात्रों के साथ - साथ सैकड़ों अनाथ एवं अत्यंत गरीब छात्रों को निःशुल्क भोजन, वस्त्र एवं छात्रावास में रहने की सुविधा के साथ आदर्श शिक्षा एवं गुरुकुल के विशाल प्रांगण में खेल सुविधा भी उपलब्ध थी |  छात्रों के आदर्श चरित्र निर्माण, व्यवहार विज्ञान, योग, प्राणायाम, ध्यान, संस्कार निर्माण एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व निर्माण पर इस गुरुकुल में विशेष ध्यान दिया जाता था | निजी रूप से गठित विद्यालय प्रबंधन समिति के नियंत्रणाधीन इस शिक्षण संस्थान के लिए यह बड़े ही गर्व की बात है कि इसने आदर्श शिक्षण एवं प्रशिक्षण द्वारा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर के ख्यातिप्राप्त अनेकानेक आदर्श सफल शिक्षक, प्राध्यापक (प्रोफ़ेसर), डॉक्टर, इंजीनीयर, समाज सेवक एवं वक्ता को तैयार किया जिन्होंने आदर्श रूप में समाज, राज्य, राष्ट्र और विश्व समुदाय की सर्वोत्कृष्ट सेवा द्वारा आदर्श मिसाल स्थापित किया | सुप्रसिद्ध चक्षु रोग विशेषज्ञ स्व० डॉ० दुखन राम, सुप्रसिद्ध चिकित्सक (फीजीशीयन) स्व० डॉ० बद्री प्रसाद, सुप्रसिद्ध आयुर्वेद विशेषज्ञ पटना आयुर्वेदिक कॉलेज के प्राचार्य एवं बनारस हिंदू विश्व विद्यालय में इंस्टीच्यूट ऑफ इन्डियन मेडिसीन के निदेशक (डायरेक्टर) स्व० प्रिय व्रत शर्मा, सुप्रसिद्ध इंजीनियर स्व० पारस नाथ, सुप्रसिद्ध वक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता स्व० रमाकांत पांडे एवं स्व० लखन लाल पाल आदि पंडित हरि नारायण शर्मा के सबसे प्रिये शिष्य थे |
आगे चलकर मुस्तफापुर के उपरोक्त सुप्रसिद्ध गुरुकुल को देवघर में स्थानांतरित कर दिया गया, जहाँ वह आज भी “गुरुकुल महाविद्यालय, बैद्यनाथधाम” के नाम से चल रहा है | तदनंतर वेद रत्न विद्यालय (गुरुकुल) के विशाल प्रांगण में पंडित हरि नारायण शर्मा ने “वेद रत्न उच्च विद्यालय” तथा “डी० ए० वी० मध्य विद्यालय” की भी स्थापना की | उपरोक्त “वेद रत्न विद्यालय (गुरुकुल)” के स्वरुप तथा पंडित हरि नारायण शर्मा के जीवन एवं कार्यों का वर्णन “के० पी० जाएसवाल रीसर्च इंस्टीच्यूट (बिहार सरकार), बुध मार्ग (पटना संग्रहालय प्रांगण), पटना” द्वारा प्रकाशित “कौम्प्रीहेंसिव हिस्ट्री ऑफ बिहार, वोल्यूम – III, पार्ट -  II के पृष्ठ स० 29,31, 37में भी उपलब्ध है |
पंडित हरि नारायण शर्मा ने अपने निजी भूखंड पर सन 1916 ई० में दो स्थानों पर यथा - बिहार की राजधानी पटना के निकट पुनपुन शहर में तथा पटना के निकट कैंट रोड, मुस्तफापुर, खगौल, पटना (बिहार) में अपने पैतृक मकान के सामने करीब 6000 स्क्वेयर फीट (तेरह डिसमील) में दोमंजिला पक्का मकान का भव्य इमारत बनवाकर उसमें सुप्रसिद्ध आयुर्वेदिक दवाखाना (आयुर्वेदिक अस्पताल) की स्थापना की | इन दोनों स्थानों पर आयुर्वेदिक दवाखाना (आयुर्वेदिक अस्पताल) में अन्य लोगों के साथ साथ हजारों गरीब लोगों को निःशुल्क चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाया जाता था |
सन 1962 ई० में पंडित हरि नारायण शर्मा का स्वर्गवास हो गया | आगे चलकर सन 1967 ई० में उनके एकमात्र पुत्र स्व० वेद व्रत शर्मा (सुप्रसिद्ध शिक्षाविद, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिप्राप्त पत्रकार, अनेक विद्यालयों के संस्थापक एवं प्राचार्य) का भी स्वर्गवास हो गया | तदनंतर सन 1988 ई० में उनके बड़े भतीजा स्व० सत्य व्रत शर्मा “सूजन” (बिहार राज्य के राजभाषा विभाग के पूर्व निदेशक) का स्वर्गवास हो गया | सन 2010 ई० में उनके छोटे भतीजा स्व० प्रिय व्रत शर्मा (राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर के सुप्रसिद्ध आयुर्वेद विशेषज्ञ, पटना आयुर्वेदिक कॉलेज के पूर्व प्राचार्य एवं बनारस हिंदू विश्व विद्यालय में इंस्टीच्यूट ऑफ इन्डियन मेडिसीन के पूर्व निदेशक तथा आयुर्वेद विषय पर अनेकानेक विश्व प्रसिद्द पुस्तकों के लेखक अनुवादक) का स्वर्गवास हो गया |
वर्तमान में पंडित हरि नारायण शर्मा के पैतृक ग्राम मुस्तफापुर में मात्र उनके एक पौत्र श्री ब्रज बल्लभ शर्मा “ब्रजराज” (बिहार सरकार के सेवा निवृत्त पदाधिकारी) तथा चार प्रपौत्र, यथा – कृष्ण बल्लभ शर्मा “योगीराज” (पटना उच्च न्यायालय के विख्यात अधिवक्ता, लेखक तथा राष्ट्रीय नव निर्माण परिषद एवं कृष्णा फाउन्डेशन के संस्थापक अध्यक्ष), विजय बल्लभ शर्मा (चिकित्सक), पृथ्वी बल्लभ शर्मा (अर्थशास्त्री) और शिव बल्लभ शर्मा (पत्रकार) सपरिवार रहते हैं |                                                                                                                                                                                                                                                                            

Tuesday 1 May 2012

Most Authentic scientific Interpretation of Dharma


Most Authentic scientific Interpretation of Dharma
(Quoted from the Book “Basic Principles of Dharma, Justice and Democracy” written by Krishna Ballabha Sharma “Yogiraj”)

“Dharma” is an original “Sanskrit Word” of very wide connotation and it has no other equivalent substitute word in any other language of the world. For the last about 3,000 years innumerable “So Called Scholars” with a prejudiced mindset have been misinterpreting the concept of “Dharma” in a very narrow sense. Consequently the common masses are confused and have formed wrong notion of “Dharma” and they have begun to use it as a synonym of “Religion” or “Mazahab” or “Sampraday” associated with Modes or Methods of God Worship, Rites and Rituals, Festivals, Dress Code, Religious Symbols, Difference in Hypocrisy and Hypocritical Practices, Difference in Places of God Worship like Temple, Mosque, Church, Gurudwara etc. The fact is that all of the “Great Socio–Religious Reformers”, namely- Lord Buddha, Lord Mahavir, Jesus Christ, Prophet Mohammad, Guru Nanak Deva, Sant Kabir Das, Martin Luther, Swamy Dayanand Saraswati, Swamy Vivekanand etc. had vehemently opposed “Hypocrisy and Hypocritical Practices” prevalent at their times, and they accepted only the “Original Basic Principles of Dharma” explained in the oldest and the most authentic Sacred Scripture - “Veda”. By taking into account “Desha” (Locality), “Kaal” (Time, Situation and Circumstances) and “Paatra” (Concerned Person or People), they explained simple interpretation of “Dharma” in their local language, and they tried to explain the concept of “Dharma” as Righteousness, Ideal Conduct, Ideal Behavior, Love, Benevolence, Truth, Justice and Public Service devoid of Hypocrisy. But their followers have established different “Religions” in their names and have begun to “hate and fight” against others. Therefore, it is essential to explain the most authentic scientific interpretation of the “Concept of Dharma” as explained in the “Veda”.

“Dharma” has been defined in “Atharva Veda” as follows:-
 “सत्यं बृहद ॠतं उग्रं दीक्षा तपो ब्रह्म यज्ञः पृथिवीं धारयन्ति ।“--अथर्ववेद, १२.१.१

“Satyam Brihad Ritam Ugram Diksha
Tapo Brahma Yagyah Prithivim Dharayanti”.      --- Atharva Veda, 12.1.1

“Lord Krishna” has explained “Dharma” as follows:-
 “धारणाद्धर्ममित्याहुर्धर्मो धारयते प्रजाः  यत्स्याद धारणसंयुक्तं धर्म इति निश्चयः ॥“
                                          -- महाभारत, कर्णपर्व, ६९.५८

“Dharanaddharmamityahurdharmo dharayate prajah.
Yatsyad dharansanyuktam sa dharma iti nishchayah.”
– Mahabharat, Karnaparva, 69.58

 Therefore, scientifically and with full authenticity, it can be rightly said that – “Satya, Rit, Ugra, Diksha, Tapa, Brahma and Yagya” – these are the “Seven Pillars of Dharma”, on the basis of which the entire structure of the civilized society and state is maintained, upheld and sustained in order and all round sustainable development of individuals and society is made possible on this Earth. The most authentic scientific interpretation and real meaning of the Seven Pillars of Dharma is as follows:
1.    Satya – Making proper statement by taking into account Desha (Locality), Kaal (Time, Situations and Circumstances) and Paatra (Concerned Person or People).
2.    Rit – Maintenance of discipline and regularly doing one’s personal, social and professional work properly in time.
3.    Ugra – Infliction of suitable punishment with full fury to the evil persons, criminals and terrorists, for proper maintenance of peace and law and order in society, for forcible defense of rights and suppression of wrongs, for Victory of Dharma in all its features.
4.    Diksha – Development of Competent Persons by providing proper education and training of Behavioral Science, Natural Science, Social Sciences, Yoga, Pranayam, Meditation, Arms Training, Professional and Technical Education and Training, including development and possession of the “Twelve Kinds” of “Manava Sadguna” (Human Virtues), namely- (I). “Dhairya” (Patience),       (II). “Dhriti” (Firm Determination), (III). “Dama” (Self - Discipline), (IV). “Daya” (Kindness),         (V). “Kshama” (Forgiveness), (VI). “Prema” (Love), (VII). “Paropkaar” (Benevolence),            (VIII). “Vinamrata” (Politeness), (IX). “Nirbhikta” (Fearlessness), (X). “Dhairya” (Patience),  Courage, Perseverance, and Universal Respect for One and All”, for successful handling of all kinds of situations, for leading a meaningful successful life.
5.    Tapa – Sustained continuation of one’s professional work with full concentration of mind, without being disturbed or interrupted by the adverse circumstances or problems of day–to– day practical life.
6.    Brahma – Acquisition of proper knowledge of Natural Science and Social Sciences; maintenance of one’s own conduct and behavior by adjustment with the Rules of the Nature; dedication of one’s life in the service of humanity; working for Victory of Dharma in all its features for doing Justice to one and all by equal application of the Rules of Darma to all alike and by giving each and every person what is due to him or her in accordance with the Rules of Dharma, for Sustainable Development of individuals, society and state by Protection of Environment; relinquishment of the “Ten Kinds” of Manava Durguna” (Human Vices), namely- (I). Irshya (grudge), (II). Dwesha (malice), (III). Krodha (anger), (IV). Lobha (greed), (V). Moha (delusion of mind), (VI). Purwagrah (prejudice), (VII). Pakshapat (bias), (VIII). Bhaya (fear), (IX). Ghrina (hatred), (X). Ahankar (empty pride).
7.    Yagya – Prayer to the Lord Almighty or God for the welfare of oneself, one’s family, society, state, nation and the entire world, by performance of all of the “Four Parts” of “Yagya”, namely :–
      I.        Mantrochcharan – Production of a Rhythmic Welfare Wave in the environment by Rhythmic Recital of the Scientifically Composed Powerful Words in Metre in praise of the “Lord Almighty or God”.
    II.        Havan – Purification of the local environment by burning of the Sacred Wood (Sandal Wood or Cedar Wood), Incense, Sesame, Ghee (Cow Butter), Medicinal Plants etc.
   III.        Bali – Dedication of some part of one’s own best food items to the useful Animals, Birds and Ants in the name of the “Lord Almighty or God”. For example there are most popular “Five Kinds of Bali”, namely- Gobali, Shwanbali, Ashwabali, Kaakbali and Pipilikaadibali (Dedication of a part of one’s food to a Cow, Dog, Horse, Crow or Birds Community, Ants or Small Creatures, which are useful for human beings and living in residential areas).
  IV.        Daan – Dedication of the maximum possible wealth, earnings, moveable and immoveable properties to some “Supatra Brahman” (Worthy Brahman) and “Rishi” with highest respect, regard and honor by their respectful invitation to the place of “Yagya” (God Worship) for establishment and maintenance of “Rishi Ashram” i.e. Ideal Residential Educational Institutions, Scientific Research Centers, Hospitals, Welfare Organizations etc.

Here “Brahman” means a “Learned Person” well versed in the knowledge and use of the arms and ammunition, behavioral science, sacred scriptures, natural science and social science, who has dedicated his life to the service of humanity for all round sustainable development of society, state, nation and world community, after having relinquished and become free from the above mentioned “Ten Kinds of Human Vices”, and who works as a Teacher, Professor, Legal Advisor, Judge, Physician, Surgeon, Research Scholar, Scientist, Writer, Poet, Priest and Social Worker.

Here “Rishi” means a “Shreshth Varishth Brahman” or Senior Great Brahman working as Heads of the Educational Institutions, Universities, Scientific Research Centers, Hospitals, Welfare Organizations etc.

Therefore, stop “Hatred and Fight” in the name of “Caste” and “Religion”. Follow “Dharma” as explained in the “Veda” and make it the basis of “Methods of God Worship, Rites and Rituals, Festivals Conduct and Behavior” for development and welfare of your own as well as of society, state, nation and world.

Please provide your all possible help and cooperattion  in establishment and maintenance of an Ideal “Dharma Samaj Mandir” (Dharma Samaj Temple) comprising of “Common Place of God Worship and Yagya for all Communities, Comprehensive Education Center, Hospital, Orphanage, Old Age Home, Guest House, Marriage Hall, Seminar Hall, Auditorium, Community Hall etc.” in every Village Panchayat, Colony, Town, City, District and State in the entire world.

By- Krishna Ballabha Sharma "Yogiraj" 
Advocate (Lawyer), Patna High Court, Patna (India) 
Mobile No.- 9470415140 / 9934771469

Author of the Books Entitled : 
Basic Principles of Dharma, Justice and Democracy
History Maker (Collection of Life Inspiring English Poems)
Neo- Socialism and Sustainable Development
Noble Qualities of Lawyers and Judges
Corruption and Its Effect on Society
Philosophy of Life and Love
इतिहास रचयिता (प्रेरणादायक हिन्दी काव्य संकलन)
धर्म, न्याय एवं जनतंत्र के मूल सिद्धांत
जीवन दर्शन और प्रेम दर्शन

Founder and Chairman: Dharma Samaj
Founder and Chairman: Krishna Foundation (Trust)
Founder and Chairman: Human Rights Protection Committee
Founder and President: Rashtriya Nava Nirman Parishad
Founder and President: Dignified Brahman Association of India
Founder and President: Dignified Lawyers Association of India

इन्सान की उलझन


इन्सान की उलझन

ईश्वर कहूं, अल्लाह कहूं, गॉड कहूं या रब तुम्हें ?
खुद तुम ही बतला दो भगवन, राम कहूं या रहीम तुम्हें ?
कृष्ण भी तुम, गोविन्द भी तुम, मोहन तुम, घनश्याम भी तुम,
कह दूं तुमको माखनचोर, मुरलीधर क्या कहूं तुम्हें ?

मंदिर जाऊं, मस्जिद जाऊं, चर्च में या गुरुद्वारे में,
कहां पे तुझको ढूंढूं भगवन, काबा में या काशी में ?
सब कहते तुम एक हो, फिर नाम तुम्हारे इतने क्यों ?
कणकण में तुम व्याप्त हो, तो फिर मंदिर क्यों और मस्जिद क्यों ?

मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा, सब के सब ()गर तेरा घर तो,
मंदिर के नाम पे झगडा क्यों, मस्जिद के नाम पे दंगा क्यों ?
()गर लडवाते हैं मंदिरमस्जिद, मेल कराती मधुशाला,
तो मधुशाला में ही रह लेते, मंदिरमस्जिद में रहते क्यों ?

तेरी सच्ची पूजा कौनसी भगवन- मंदिर जा घंटा बजा तेरी मूर्ति की पूजा करूं ?
या खुली हवा में बैठ हवन कर, वेद मंत्र का जाप करूं ?
चर्च में जा संडे प्रेयर में भग लूं मैं, या जुम्मे को मस्जिद में जाके नमाज पढूं ?
या फिर, मानवता की सेवा को तेरी सच्ची सेवा मानूं, और प्यार दया का भाव धरूं ?

प्यार, दया, करूणा के सागर, अल्लाह मुझे अब तू ही बता,
पैगामे मुहब्बत भेजा तुमने, दहशतगर्दी कहां से आयी ?
निर्दोशों का खून बहाना, “जिहादहैकिसने समझाया ?
क्रूर बना इन्सां कैसे, नफरत की आंधी कहां से आयी ?

दहशतगर्दी और जंगोजदल, इस्लाम का मकसद कैसे बना ?
दहशतगर्दों की मौत शहादतबात ये किसने समझायी ?
या खुदा मुझको बता, क्या नेकी का रस्ता यही है ?
कुरान में क्या लिखा यही, या बेहतर दूसरी कोइ किताब नहीं है ?

धर्म ने था जीना सिखलाया, पर धर्म को सबने छोड़ा,
संप्रदाय में बंट गए लोग, अधर्म सभी ने अपनाया;
मजहब माने तो सम्प्रदाय, पर लोगों ने उसे धर्म बताया,
रिलीजन, धर्म बना कैसे – हमें आज तलक ये समझ ना आया |

पंडित का उपदेश सुनूँ या पादरी का मैं सरमन मानूँ ?
वाइज का मैं वाज सुनूँ या बुद्ध का सन्देश- “आत्म दीपो भव” मानूँ ?
सब कहते हैं “आत्मा परमात्मा का रूप है”, तो फिर
अपनी आत्मा की आवाज सुनूँ या वाइज का मैं वाज मानूँ ?

चन्दन वाले, चोटी वाले, फेटा वाले, चोगा वाले,
टोपी वाले, दाढ़ी वाले, मजहब की दुकान चलाने वाले,
सब मानते कि – “एक औरत मर्द से पैदा हुए मानव सारे”,
एक माता पिता के सब बेटे, तो जाति अलग दो मजहब क्यों ?

फिर हिन्दू क्यों, कोई मुस्लिम क्यों, कोई यहूदी क्यों, कोई क्रिश्चयन क्यों ?
कोई सिख है क्यों, कोई बौद्ध है क्यों, कोई जैन है क्यों, कोई पारसी क्यों ?
फिर पंडित क्यों और मौलवी क्यों, कोई शेख है क्यों, कोई सैयद क्यों ?
कोई शिया है क्यों, कोई सुन्नी क्यों, और यह दोनों आपस में हैं लड़ते क्यों ?

श्रम विभाजन, कर्म हमारा – जाति का आधार अगर तो,
जूते की दुकान चलाने वाला राजपूत कहलाता क्यों ?
पढ़ा लिखा मंत्री होकर भी शुद्र कोई कहलाता क्यों ?
जो तलवार उठा नहीं सकता, क्षत्रिय है कहलाता क्यों ?

जन्म अगर था पेशे का आधार बना तो,
शुद्र बना फिर मंत्री क्यों, ब्राह्मण कोई संतरी क्यों ?
ग्वाला शिक्षक बना है कैसे, पंडित पॉकेटमार है क्यों ?
न्यायाधीश चमार है क्यों, और राजपूत चपरासी क्यों ?

(अ)गर इन सबका कोई अर्थ नहीं, तो जाति क्यों और मजहब क्यों ?
जाति के नाम पे झगड़ा क्यों, मजहब के नाम पे दंगा क्यों ?
अलग अलग समुदायों के फिर, अलग अलग भगवान हैं क्यों ?
ईश्वरभक्त – अल्लाह के बंदे, आपस में फिर लड़ते क्यों ?

ईश्वर तुझे हिंदू पुकारे, मुस्लिम के अल्लाह तुम,
सिख भाई कहते वाहे गुरु, क्रिश्चयन बन्धु के गौड हो तुम,
इंसान हूँ मैं, ठहरा नादान, मैं भला क्या कहूँ तुम्हें ?
उलझन में मैं पड़ा हूँ भगवन, मुझे बता क्या कहूँ तुम्हें ?

ईश्वर कहूं, अल्लाह कहूं, गॉड कहूं या रब तुम्हें ?
खुद तुम ही बतला दो भगवन, राम कहूं या रहीम तुम्हें ?
कृष्ण भी तुम, गोविन्द भी तुम, मोहन तुम, घनश्याम भी तुम,
कह दूं तुमको माखनचोर, मुरलीधर क्या कहूं तुम्हें ?
  
n     कृष्ण बल्लभ शर्मायोगीराज
(“इतिहास रचयितानामक पुस्तक से उद्धृत)