इन्सान की उलझन
ईश्वर
कहूं, अल्लाह कहूं, गॉड कहूं या रब
तुम्हें ?
खुद
तुम ही बतला दो भगवन, राम कहूं या रहीम
तुम्हें ?
कृष्ण
भी तुम, गोविन्द भी तुम, मोहन तुम, घनश्याम भी तुम,
कह
दूं तुमको माखनचोर, मुरलीधर क्या कहूं तुम्हें ?
मंदिर
जाऊं, मस्जिद जाऊं, चर्च में या गुरुद्वारे
में,
कहां
पे तुझको ढूंढूं भगवन, काबा में या काशी
में ?
सब
कहते तुम एक हो, फिर नाम तुम्हारे इतने क्यों ?
कण – कण में तुम व्याप्त हो, तो फिर
मंदिर क्यों और मस्जिद क्यों ?
मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा,
सब के सब (अ)गर तेरा घर तो,
मंदिर
के नाम पे झगडा क्यों, मस्जिद के नाम
पे दंगा क्यों ?
(अ)गर लडवाते
हैं मंदिर – मस्जिद, मेल
कराती मधुशाला,
तो
मधुशाला में ही रह लेते, मंदिर – मस्जिद
में रहते क्यों ?
तेरी
सच्ची पूजा कौन–सी भगवन- मंदिर जा घंटा बजा तेरी मूर्ति की पूजा करूं ?
या
खुली हवा में बैठ हवन कर, वेद मंत्र का जाप
करूं ?
चर्च
में जा संडे प्रेयर में भग लूं मैं, या जुम्मे
को मस्जिद में जाके नमाज पढूं ?
या
फिर, मानवता की सेवा को तेरी सच्ची सेवा मानूं, और प्यार
दया का भाव धरूं ?
प्यार, दया, करूणा के सागर, अल्लाह मुझे अब तू ही बता,
पैगामे
मुहब्बत भेजा तुमने, दहशतगर्दी कहां से आयी ?
निर्दोशों
का खून बहाना, “जिहाद” है – किसने समझाया ?
क्रूर
बना इन्सां कैसे, नफरत की आंधी
कहां से आयी ?
दहशतगर्दी
और जंगो – जदल,
इस्लाम का मकसद कैसे बना ?
दहशतगर्दों
की मौत शहादत – बात ये किसने
समझायी ?
या
खुदा मुझको बता, क्या नेकी का रस्ता
यही है ?
कुरान
में क्या लिखा यही, या बेहतर
दूसरी कोइ किताब नहीं है ?
धर्म ने था जीना सिखलाया, पर धर्म को सबने छोड़ा,
संप्रदाय में बंट गए लोग, अधर्म सभी ने अपनाया;
मजहब माने तो सम्प्रदाय, पर लोगों ने उसे धर्म बताया,
रिलीजन, धर्म बना कैसे – हमें आज तलक ये समझ ना आया |
पंडित का उपदेश सुनूँ या पादरी का मैं सरमन मानूँ ?
वाइज का मैं वाज सुनूँ या बुद्ध का सन्देश- “आत्म दीपो भव”
मानूँ ?
सब कहते हैं “आत्मा परमात्मा का रूप है”, तो फिर
अपनी आत्मा की आवाज सुनूँ या वाइज का मैं वाज मानूँ ?
चन्दन वाले, चोटी वाले, फेटा वाले, चोगा वाले,
टोपी वाले, दाढ़ी वाले, मजहब की दुकान चलाने वाले,
सब मानते कि – “एक औरत मर्द से पैदा हुए मानव सारे”,
एक माता पिता के सब बेटे, तो जाति अलग दो मजहब क्यों ?
फिर हिन्दू क्यों, कोई मुस्लिम क्यों, कोई यहूदी क्यों, कोई
क्रिश्चयन क्यों ?
कोई सिख है क्यों, कोई बौद्ध है क्यों, कोई जैन है क्यों,
कोई पारसी क्यों ?
फिर पंडित क्यों और मौलवी क्यों, कोई शेख है क्यों, कोई
सैयद क्यों ?
कोई शिया है क्यों, कोई सुन्नी क्यों, और यह दोनों आपस में
हैं लड़ते क्यों ?
श्रम विभाजन, कर्म हमारा – जाति का आधार अगर तो,
जूते की दुकान चलाने वाला राजपूत कहलाता क्यों ?
पढ़ा लिखा मंत्री होकर भी शुद्र कोई कहलाता क्यों ?
जो तलवार उठा नहीं सकता, क्षत्रिय है कहलाता क्यों ?
जन्म अगर था पेशे का आधार बना तो,
शुद्र बना फिर मंत्री क्यों, ब्राह्मण कोई संतरी क्यों ?
ग्वाला शिक्षक बना है कैसे, पंडित पॉकेटमार है क्यों ?
न्यायाधीश चमार है क्यों, और राजपूत चपरासी क्यों ?
(अ)गर इन सबका कोई अर्थ नहीं, तो जाति क्यों और मजहब क्यों
?
जाति के नाम पे झगड़ा क्यों, मजहब के नाम पे दंगा क्यों ?
अलग अलग समुदायों के फिर, अलग अलग भगवान हैं क्यों ?
ईश्वरभक्त – अल्लाह के बंदे, आपस में फिर लड़ते क्यों ?
ईश्वर तुझे हिंदू पुकारे, मुस्लिम के अल्लाह तुम,
सिख भाई कहते वाहे गुरु, क्रिश्चयन बन्धु के गौड हो तुम,
इंसान हूँ मैं, ठहरा नादान, मैं भला क्या कहूँ तुम्हें ?
उलझन में मैं पड़ा हूँ भगवन, मुझे बता क्या कहूँ तुम्हें ?
ईश्वर
कहूं, अल्लाह कहूं, गॉड कहूं या रब
तुम्हें ?
खुद
तुम ही बतला दो भगवन, राम कहूं या रहीम
तुम्हें ?
कृष्ण
भी तुम, गोविन्द भी तुम, मोहन तुम, घनश्याम भी तुम,
कह
दूं तुमको माखनचोर, मुरलीधर क्या कहूं तुम्हें ?
n कृष्ण बल्लभ शर्मा “योगीराज”
(“इतिहास रचयिता” नामक पुस्तक से उद्धृत)
प्यार, दया, करूणा के सागर, अल्लाह मुझे अब तू ही बता,
ReplyDeleteपैगामे मुहब्बत भेजा तुमने, दहशतगर्दी कहां से आयी ?
निर्दोशों का खून बहाना, “जिहाद” है – किसने समझाया ?
क्रूर बना इन्सां कैसे, नफरत की आंधी कहां से आयी ?
दहशतगर्दी और जंगो – जदल, इस्लाम का मकसद कैसे बना ?
दहशतगर्दों की मौत शहादत – बात ये किसने समझायी ?
या खुदा मुझको बता, क्या नेकी का रस्ता यही है ?
कुरान में क्या लिखा यही, या बेहतर दूसरी कोइ किताब नहीं है ?