जय भारत जय भारती
(राष्ट्र- स्तूति गान)
जय भारत जय भारती, जय भारत जय भारती ।
पुण्य भूमि यह भारत की, है सारी सृष्टी पुकारती,
जय भारत जय भारती, जय भारत जय भारती ।
ज्ञान और विज्ञान की जननी, धर्मभूमि यह कर्मभूमि है,
पर्वतराज हिमालय को सारी दुनिया है निहारती,
जय भारत जय भारती, जय भारत जय भारती ।
खान, खनिज, जंगल, उपवन, ऊँचे पर्वत और हिमशिखर,
हैं हरे भरे मैदान, यहाँ पर प्रकृति हर सम्पदा है वारती,
जय भारत जय भारती, जय भारत जय भारती ।
गंगा, यमुना, सिन्धु नदी और ब्रह्मपुत्र, कृष्णा, कावेरी,
नदियां सारी मिलकर के भारत भूमि को संवारती,
जय भारत जय भारती, जय भारत जय भारती ।
कश्मीर से कन्याकुमारी, असम से गुजरात की धरती हमारी,
विन्ध्य, हिमाचल, आन्ध्र, तमिल, बंगाल की भूमि रही सदा है पुकारती,
जय भारत जय भारती, जय भारत जय भारती ।
पंजाब, मगध, मेवाड, मराठा, मिथिला, काशी, पाटलीपुत्रा,
ब्राह्मण क्षत्रिय वीरों की और वैश्य शूद्र की पावन भूमि पुकारती,
जय भारत जय भारती, जय भारत जय भारती ।
वीरों की और ऋषि मुनियों की जननी है, यह कर्मभूमि है,
जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान – जनता सदा है पुकारती,
जय भारत जय भारती, जय भारत जय भारती ।
यहाँ ईश्वर पूजा की पद्धति, परिधान और रीति रिवाज अलग,
पर बाल- वृद्ध नर- नारी सारे, युवावर्ग की टोली सदा पुकारती,
जय भारत जय भारती, जय भारत जय भारती ।
n कृष्ण बल्लभ शर्मा “योगीराज”
(“इतिहास रचयिता” नामक पुस्तक से उद्धृत)
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